पुरानी डायरी
पुरानी डायरी
जिस डायरी में कभी शायरी लिखा करते थे
अब उसमें दिनचर्या लिखने लगा हूँ
या यूँ कहो कि
दिनखर्चा लिखने लगा हूँ
उधार पैंच लेनी देनी
दारु सिगरेट बीड़ी खैनी
प्याज टमाटर
लहसुन अदरख।
परंतु वक्त के झोंके से
पलट जाते है जब पन्ने खास
विचलित कर जातें है मन
पन्नों के बीच सूखे गुलाब की पंखुड़ी
रुला जाती है अक्सर
दिलाने लगती है यादें
बीते रुहानी उन लम्हों की ।।
घंटों महीने दिन व रातें
जितनी यादें उतनी ही बातें
रुठना मनाना व अटकती साँसे
स्वप्निल दुनिया, छलांग लगाती खुशियाँ
चंचल मन जैसे उड़ती तितलियाँ ।।
आज हताश निराश जा बैठा हूँ
जिम्मेदारियों के सूखे वृक्ष तले
और पतझर के पतों की तरह
बेबस निगाहों से देखता हूँ
अपनी ही डाली की ओर
जहाँ नव पल्लवों ने ले ली है जगह
सब भूलते भागते क्षण की तरह ।।
जिस डायरी में कभी शायरी लिखा करते थे
अब उसमें दिनचर्या लिखने लगा हूँ
या यूँ कहो कि दिनखर्चा लिखने लगा हूँ ।।