पुराना टी. बी.
पुराना टी. बी.
पुराने टी.बी. की तो बात निराली थी।
थी तो ब्लेक इन व्हाइट पर सपने रंगीन दिखाती थी।
वो एक ही टी. बी. के आगे सभी का बैठना,
वो रामायण, महाभारत शुरू होने से पहले
दादी का हाथ जोड़ना , सच्ची श्रद्धा दर्शाती थी।
चित्रहार देखने के लिये चाची जल्दी से खाना बनाती थी।
रंगोली के लिये तो बिल्कुल बेकरार हो जाती थी।
शनिवार, रविवार को फिल्म देखने के लिये,
मोहल्ले वाले भी आ जाते थे।
हम सब एक परिवार है, ये भाव मन मैं जगाते थे।
वो रविवार की छुट्टी भी स्पेशल हो जाती थी।
कृष्णा देखने को मम्मी हमें सुबह- सुबह नहलाती थी।
शक्तिमान देखने के लिये हम कितनी जुगत लगाते थे।
जो साफ न आये चित्र तो
किसी एक को छत पर एंटीना पकड़ बिठाते थे।
"रुकावट के लिये खेद है" भी हम एकटक निहारते थे।
आते ही प्रोग्राम सभी को आवाज देकर बुलाते थे।
तेनालीराम देखकर हम साथ- साथ खिलखिलाते थे।
दुख देखकर पता नहीं क्यों हम अपनी भी आँखे भिगोते थे।
पुराने टी.बी. ने परिवार जोड़ रखा था।
काले सफेद चित्रों में जिन्दगी का रस घोल रखा था।
