प्रकृति की सजावटें
प्रकृति की सजावटें
सुनहरे कलशे से बूंदो में बहती
नीर सी मेरी ख्वाईश
सुनहरी धरा पर झलक कर
सुनहरे स्वपनों को बो गई,
मेरे ह्रदय के मधुवंन में
मोरपंखी सी सजती मेरी अभिलाषा को
प्रकृति की सजावटें अमिय रस पिला गई,
पवन की शहनाई ने बाँधा समां मल्हार का
छिडती रागिनी सावन की फुहार को बुला लाई ,
चिर निद्रा में लीनं स्वपनिल नैनो को
भँवर गुन्जनी मंडरा कर जगा लाई,
चहल कदमी करती तितलियों की
टोलियाँ मधुर स्वपन की डालियों पर झूल आई
आलापती ऋतु पृकृति के सौंदर्य को
सरितायें सागर की सीपियों से सृंगार कर आई ,
तरसती नमीं को रेत की सूखी हसरतें
बारिश की बूंदो से तृप्त हो आई ,
ढलती शाम की लालिमा रात के आगोश
में जाकर चाँद को जमीं पर उतार लाई !