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Archana kochar Sugandha

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Archana kochar Sugandha

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प्रकृति की गोद में

प्रकृति की गोद में

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प्रकृति की गोद में 

समाई सारी मौज रे

रमणीक स्वच्छ निर्मल हवा 

कंदमूल फल दवा

पेड़-पौधे जंगल का

मज़ा बड़ी ही हसीन, 

खूबसूरत फिजा।


प्रकृति की गोद में 

समाई सारी मौज रे

जानवरों का संगीतमय शोर 

झूमता मदमस्त नाचता

सतरंगी मोर 

जंगलों के राजा शेर की दहाड़ 

हाथी की हुंकार उखाड़ता पहाड़। 


प्रकृति की गोद में 

समाई सारी मौज रे

नदियाँ झरने ताल-तलैया

गिरता पानी पर्वतों से

करता था-था थैया 

हुलसित अली, 

कुसुमित कली 

समतल ज़मीन 

ना कोई तेरी

ना कोई मेरी गली।


प्रकृति की गोद में 

समाई सारी मौज रे

पंक में कंवल 

संदल की भीनी-भीनी महक

सप्तरंगी तितलियों की चहक 

मकड़ियों के जाले

ना कोई माली 

ना ही कोई रखवाले।


प्रकृति की गोद में 

समाई सारी मौज रे जंगलों में

बसे मंदिरों के शंखनाद 

मन-मस्तिष्क में भरते शाद 

तम में जुगनूओं का प्रकाश 

संदल की भीनी भीनी खुशबू 

सामंजस्य बैठाता

उनसे नीला आकाश।

प्रकृति की गोद में 

समाई सारी मौज रे।



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