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दयाल शरण

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दयाल शरण

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प्रजातन्त्र

प्रजातन्त्र

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दहशतों से डरा-डरा

स्वांस से मरा-मरा।

इस तरह थका-थका

पथ से पथिक डिगा-डिगा।


ऐसे कौन लक्ष्य थे ?

जो अर्जनों को उग्र थे ?

ऐसे कौन पक्ष थे ?

जो जीत पर आक्रांत थे ?


देश का संदेश है

जन, नहीं कोई दरवेश है।

जन प्राण है जन शक्ति है

जन है तो जन का देश है।


बहुमत हुआ शासक बने

अभिमत हुआ राजा बने।

प्रतिकूल जनमत के क्यूँ बने

जनता जनार्दन के बनें।


मान को सम्मान दो

जनाधार को अभिमान दो।

मतदान को विश्वास दो

जनमत को सु-आकार दो।


मन मे विकार हों तो हों

वे होम अग्नि में हों तो हों।

बिखरें ना सु-गणवेश हो

वह देश था यह देश हो।


दहशतों से ना डरा रहे

स्वांसों से ना मरा रहे।

ना थके कभी अथक रहे

पथ से कभी ना डिगा रहे।


बिखरें ना सु-गणवेश हो

वह देश था यह देश हो।

मतदान को विश्वास हो

जनमत को सु-आकार हो।


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