प्रेम
प्रेम
कहे धरती और नील गगन ,
हम सब पर प्रेम लुटायेंगे ,
गुनगुनायें शीत पवन भी ,
धीरे-धीरे प्रेम से सहलायेंगे !
वृक्ष भी झूम कर गा उठे ,
देकर ठण्डी छांव तुम्हें ,
तपन तेरे तन-मन की ,
हम पल में मिटायेंगे !
चाँद कहे दूर गगन से ,
दिखा बादलों से अक्स अपना,
इन्तजार की विरह-अग्न ,
अँजुरी में चन्द्र -रश्मि लायेंगे !
झरनों -नदियों की गूँज पुकारे ,
प्यास मिटा धरती-पहाड़ों की ,
जल कर सूरज से बन मोती ,
फूलों की सुन्दरता बढ़ायेंगे !
धरती -आकाश ,चंदा -तारे ,
सब मिल इक आवाज में पुकारे ,
हम मिल धरती पर जीवन लायेंगे ,
हस्ती में हमारे निहित ,सब पर प्रेम लुटायेंगे !!