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नन्द कुमार शुक्ल

Others

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नन्द कुमार शुक्ल

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प्रेम नही व्यापार

प्रेम नही व्यापार

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प्रेम त्याग है प्रेम समर्पण,

प्रेम नहीं व्यापार।

त्याग समर्पण रहित प्रेम नहि, 

कहलाता व्यभिचार।


आज भावना वश इनको तज,

युवा कर रहे प्यार।

घृणा वितृष्णा मिले शोक,

हो जाता जीवन भार।


दो में एक रहे ना जीवित, 

या वियोग की सहते मार।

कहो प्रेमियों क्या इसको ही, 

कहते हो तुम सच्चा प्यार ।


सुख मे पीछे रहे भले पर, 

दुख मे करे संभार ।

वो ही नर सच्चा प्रेमी है, 

वही प्रेमिका नार ।


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