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DR ARUN KUMAR SHASTRI

Others

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DR ARUN KUMAR SHASTRI

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* पराया मत समझ लेना *

* पराया मत समझ लेना *

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कोई दिख जाए गर 

तुमसा तो । 

गनीमत हो

फ़िज़ां में रौशनी हो । 

ख़िज़ाँ में कुछ कुछ 

दिलबरी हो । 

चलो हम आशियाने को 

अब कहीं और ले जाएँ । 

हवाएं ख़ुशनुमा हों 

तो ग़नीमत हो । 

मुझे तुमसे तुझे मुझसे 

अदावत सी लगावट हो । 

न कोई संशय हो

न कोई चाहत हो 

गिले शिकवे नहीं रखना । 

शिकायत हो तो 

कह देना । 

मैं साथी हूँ दुख सुख का 

पराया मत समझ लेना । 

कोई दिख जाए गर 

मुझ जैसा तो झट से 

पकड़ लेना । 

भरोसा कल का करना 

काल सम कहाता है । 

कल , कल करते - करते 

जीवन बीतता जाता है । 

मन का मीत नहीं मिल पाता 

सूखा सूखा मन रहता है । 

दिल की बात बताने को 

दिल बेचारा पकता रहता है । 

कोई दिख जाए गर 

मुझ जैसा तो झट से 

पकड़ लेना । 



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