प्राप्ति और प्राप्य स्त्री का
प्राप्ति और प्राप्य स्त्री का
लिखने जो बैठी मै (स्त्री) जीवन का लेखा जोखा
क्या प्राप्त हुआ और क्या खो दिया
देखा तो बस रिश्ते नाते थे वहां
मैं उन में थी कहां ?
क्या प्रश्न ये मेरा प्राप्य बना?
एक पल को जो मन बोझल हुआ
अगले ही पल सब बदल गया
नन्हे कदम दौड़ते आए
बन दोनों जहां
मेरी बाहों में समाए
सांस ले उठी खुशियां मेरी
मुस्कुराए रिश्ते और मुस्कुराए जिंदगी
कहां - तुम ही तो हो हर जगह
तुम्हारे बिना हमारा अस्तित्व है कहां?
प्राप्त हुआ जो जिंदगी को साथ तुम्हारा
तुम ही हो इन रिश्तों की जीवनधारा ।
