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डाँ .आदेश कुमार पंकज

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डाँ .आदेश कुमार पंकज

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पंकज के दोहे

पंकज के दोहे

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रस विहीन अब जिंदगी बचे नहीं अरमान ।

उथल - पुथल सब में मची परेशान हैरान ।।


पुष्प हुये रस हीन सब बची न उनमें गंंध ।

निर्मित कैसे हम करें बोलो अब मकरन्द ।।


मात्राओं का बोध न नहीं जानता छन्द ।

बिना ताल लय गीत में होता नहिं आनंद ।।


सुबह शाम गाते रहो राम नाम के छन्द ।

तेरे दुख सब हरेंगें आकर खुद गोविन्द ।।


चलें हवा के संग हम जिस दिश दिखे बहाव ।

कभी किसी के साथ हम करें नहीं दुरभाव ।।


रूखा - सूखा जो मिले उसे प्रेम से खाव ।

भेद -भाव हम न रखें रखें नहीं अलगाव ।।


अलंकार से नहिं बढ़े कभी किसी का मान ।

मानवता जिसमें नहीं समझो मृतक समान ।।


अलंकार धारण करो हो जाओ धनवान ।

व्यर्थ सभी हैं मान लो जहाँ नहीं सम्मान ।।


तुमको प्रभु ने है दिया शब्दों का भंडार ।

चुन - चुन ऐसा बोलिए हर्षित हो संसार ।।


शब्दों से हमको मिलें खुशियाँ अपरम्पार ।

कर्कश कभी न बोलिए देता कष्ट अपार ।।


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