पंकज के दोहे
पंकज के दोहे
रस विहीन अब जिंदगी बचे नहीं अरमान ।
उथल - पुथल सब में मची परेशान हैरान ।।
पुष्प हुये रस हीन सब बची न उनमें गंंध ।
निर्मित कैसे हम करें बोलो अब मकरन्द ।।
मात्राओं का बोध न नहीं जानता छन्द ।
बिना ताल लय गीत में होता नहिं आनंद ।।
सुबह शाम गाते रहो राम नाम के छन्द ।
तेरे दुख सब हरेंगें आकर खुद गोविन्द ।।
चलें हवा के संग हम जिस दिश दिखे बहाव ।
कभी किसी के साथ हम करें नहीं दुरभाव ।।
रूखा - सूखा जो मिले उसे प्रेम से खाव ।
भेद -भाव हम न रखें रखें नहीं अलगाव ।।
अलंकार से नहिं बढ़े कभी किसी का मान ।
मानवता जिसमें नहीं समझो मृतक समान ।।
अलंकार धारण करो हो जाओ धनवान ।
व्यर्थ सभी हैं मान लो जहाँ नहीं सम्मान ।।
तुमको प्रभु ने है दिया शब्दों का भंडार ।
चुन - चुन ऐसा बोलिए हर्षित हो संसार ।।
शब्दों से हमको मिलें खुशियाँ अपरम्पार ।
कर्कश कभी न बोलिए देता कष्ट अपार ।।
