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आलोक कौशिक

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आलोक कौशिक

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पिता के अश्रु

पिता के अश्रु

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बहने लगे जब चक्षुओं से 

किसी पिता के अश्रु अकारण 

समझ लो शैल संतापों का 

बना है नयननीर करके रूपांतरण 


पुकार रहे व्याकुल होकर 

रो रहा तात का अंतःकरण 

सुन सकोगे ना श्रुतिपटों से 

हिय से तुम करो श्रवण 


अंधियारा कर रहे जीवन में 

जिनको समझा था किरण 

स्पर्श करते नहीं हृदय कभी 

छू रहे वो केवल चरण 


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