STORYMIRROR

Sandeep Kumar

Others

3  

Sandeep Kumar

Others

पिता का हाथ,हाथ से

पिता का हाथ,हाथ से

1 min
174


अटूट विश्वास ही है

जो टूट नहीं पाते है

पिता का हाथ, हाथ से

छूट नहीं पाते है।।


दूर हो कर भी 

मुझसे दूर हो नहीं पाते हैं

जब भी निहारते उसे

उसके साए में पाते हैं।।


मेरे मंगल की कामना करने वाले

वह कभी न मंगल पाते हैं

नमक रोटी खाकर वो

बिन बिछावन सो जाते हैं।।


पर मेरे लिए

गद्देदार बिछावन लगाते हैं

वो पिता है

सारे कष्ट को पी जाते हैं।।


पर जरा सा भी ना कभी

कठिन समय से विचलित होते हैं

नीलकंठ धारी है वह

जो सारे दुख दर्द पी जाते हैं।।


पर परिवार में सभी को

परी सा ,प्यार से गले लगाते हैं

हजारों टेंशन हो सर में भी तो

कभी न उखड़ा शब्द बोल पाते हैं।।


Rate this content
Log in