फेयरवैल
फेयरवैल
अरमानों की हद कोशिशों के जुनूँ से
एक हमराही जो सबको भा गया,
दौड़ तो अभी भी निरंतर थी जारी
पर रफ्तार से पहले मुकाम आ गया।
सपाट सी पगडंडी पे झुरमुट भी होंगे
कभी तो घटाओं ने घेरा भी होगा,
कभी छूटती सी पतवार होगी
तो माथे विजय का सेहरा भी होगा।
लांघ पर्वत, दरिया, खाई, समंदर
स्वागत को आ गये हैं जैसे किनारे,
मसले तो दरकिनार हो ही गऐ थे
अब दिलों पर छा गये हैं जज्बात सारे।
दुआ है हमारी यूँ ही चलते रहो
दास्ताँ जैसे ये एक लिख के चले हो,
अभी तो आसमाँ और छूना है तुमको
दूर कितना भी चाहे जमीं से फिर हो।
कारवां जिन्दगानी का चलता है लेकिन
अन्तिम तो नहीं पर अभी कुछ है कहना,
रखो हमें चाहे दिल में नहीं तुम
पर यादों मे हमारी हुजूर आप रहना।