पहाड़ों की शीतल हवा
पहाड़ों की शीतल हवा
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अवनि में हिमवंत की सुंदर सुहानी सी हवा।
देवताओं की सभी रुचिकर रुहानी सी हवा।
शैल-शिखरों से अभी उन्मुक्त होती है वही।
प्राणियों की आस है अकसर पहाड़ों की हवा।
कंपकंपाती ठंड में वो फर फराती है हवा।
गर्मियों में ही सही अंतर भिगोती है हवा।
झूम के बरसात में वो सर सराती चल पड़ी,
ये पहाड़ों में कभी तेवर दिखाती है हवा।।
वो चली शीतल पहाड़ों की हवा उपहार में।
है वसंती और मंथर गंध देती ये हवा।
घाटियों से ये प्रफुल्लित महकती है जब कभी,
तन सुवासित और भीतर साँस भरती है हवा।।