पानी रे पानी
पानी रे पानी
गिलास में पानी पड़ा था
सोचूं इस का रंग है क्या
देखा उसका रंग नही है
ईश्वर ने न इसे दिया।
इतने में मेरा बेटा आया
दिया रंग था उसमे डाल
चम्मच से जब घोला उसने
हो गया था वो झट से लाल।
झील में एक दिन पहुंचा मैं तो
इस पानी का रंग हरा था
न जाने वो रंग कहाँ गया
जब एक बोतल में भरा था।
स्विमिंग पूल में साफ़ था पानी
देख सकूँ मैं अपना चेहरा
जब मैं पहुंचा बीच समुन्दर
रंग था उसका नीला गहरा।
नारंगी भी, कोका कोला
कोल्ड ड्रिंक का रंग ले लेता
सुबह मैं सूरज को पानी दूँ
थोड़ी झलक वो पीली देता।
ऊँचे पहाड़ों से ये बहता
सूरज जब बर्फ पिघलाए
रात को जब कड़ी ठण्ड है पड़ती
सफ़ेद बर्फ सा फिर जम जाए।
छोटा सा एक झरना बहता
दूध सा वो है नजर आए
बारिश का जब मिलता पानी
मटमैला वो तब हो जाए।
नदीओं का ये शीतल पानी
पहाड़ों में अमृत सा भाता
शहर का गंद जब इसमें मिलता
काला बदबूदार हो जाता।
मैंने पूछा, बोल रे पानी
असल में तेरा रंग है कैसा
बोला मुझमे जो मिला दो
लगने लगूँ मैं उसके जैसा।
