पानी भरण मैं गई थी पनघट
पानी भरण मैं गई थी पनघट
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पानी भरण मैं गई थी पनघट,
गगरी वही पर भूल गई !!
थारी लगन मोहे ऐसी लागी मोहन,
खुद की सुध भी भूल गई !!
हर मूरत हो बोले जैसे,
हर तरफ तू ही दिखे सँवारे !!
थारो दरस ऐसे लागे प्यारो
मैं सजनो सँवरनो भूल गई !!
मोह नेह का तोड़कर सबसे,
थारी चौखट पर आ पड़ी !!
जबसे इश्क़ हुआ है तुमसे,
काजल अपनों को भी भूल गई !!
थारी लगन मोहे ऐसी लागी मोहन,
खुद की सूद भी भूल गई !!
