नयी कोपलें खिलने को है
नयी कोपलें खिलने को है
नयी कोपलें खिलने को है
नया जमाना आने को है
संघर्षों ने अब तक जो छीना
वही समय लौटने को है
अंजलि फैला कर तो देखो
विधाता नया कुछ देने को है ।
जो पंछी थक कर सो गए रात में
आज वो फिर चहचहाने को है
जो चमन उजड़ा था पतझड़ में
वो आज फिर बस जाने को है।
दूर क्षितिज पर देखो सूरज आया है
बस रौशनी धरती पर आने को है
नयन मूंद क्यों सोये हो
अब सवेरा होने को है।
जो खेत पानी न मिलने पर उजड़ गए थे
आज वहां फसल लहलहाने को है
जो जमीं कभी खंडहर बन चुकी थी
फिर वहां आशियाँ बस जाने को है।
अब तक जितने आँसू बहाये है
उतनी ही मुस्कराहट से इसे मिलो
ये तुम्हारे यत्नो का ही फल है
ह्रदय से इसके गले मिलो।
जो बीता उसे भुला देना ही भला
जो है शेष प्रकृति उसे संजोने को है
आगे बढ़ कर देखो नवयुग आने को है
कोई वृद्ध फिर यौवन पाने को है।
कोयल फिर गीत सुनाने को है
फिर बसंत आने को है
नयी कोपलें खिलने को है
नया जमाना आने को है।
