नज़रिया
नज़रिया
ज़रा अपना नज़रिया बदल कर देखो
क्या पता दुनिया और ख़ूबसूरत दिखे,
ज़िन्दगी तो खेल है हार जीत का क्या पता
आज तुम हारो और कल जीत मिले,
माना अब वो धरती उपजाऊ नहीं पर
क्या पता बंजर भूमि पर उम्मीद के फूल खिले,
तुम सब्र तो रखो क्या पता
आज धूप मिली है तुम्हें कल छाँव मिले,
बात सिर्फ चीजों को लेकर अपनी सोच की है
क्या पता कल कही हमारी तुम्हारी सोच मिले,
वो जुदा है जो किनारे आज तक क्या पता
किसी संगम में किनारे भी मिले,
चल आज खुद की खोज में चले,
शायद सवालों के जवाब रास्ते में ठहरे मिले,
ना तू सही ना मै गलत चल आज खुद को साबित करे,
अपने पंख पसार चल दूर गगन में उड़ चले,
मंज़िल मिले ना मिले चल एक सफर को चले,
आजा एक ज़िन्दगी खोजने चले,
जीने की हजार वजह ढूंढने चले।