निराला इश्क़
निराला इश्क़

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चाँदनी चाँद को छूकर
धरा पर झिलमिलाती है।
रात भर विरह में तड़पे,
सवेरे चैन पाती है।
चाँद भी याद में उसकी,
रात भर जगमगाता है।
जुदा हो चाँदनी से चाँद,
कितना कसमसाता है।।
निराले इश्क़ का सजदा,
दोनों ख़ूब निभाते हैं।
दूजों के वास्ते अपनी,
मोहब्बत आज़माते हैं।