Devashish Tiwari
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पहले तो बस लहू पे ये इल्ज़ाम था मगर,
अब आँसुओं का रंग भी कच्चा निकल गया...
कुछ और बढ़ गई हैं शजर की उदासियाँ,
शाख़ों से आज फिर कोई पत्ता निकल गया...
अब तो सफ़र का कोई भी मक़्सद नहीं रहा,
ये क्या हुआ कि पाँव का काँटा निकल गया...
रेलवे स्टेशन ...
अधूरी देह — अ...
देव — संयम की...
"ठेका हर मोड़...
तो बात बनेगी
शिकवा मोहब्बत...
प्यार की कोशि...
धोखेबाज इश्क
प्यार का इजहा...
जिंदगी