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Pratima Devi

Others tragedy others

4.8  

Pratima Devi

Others tragedy others

निःशब्द हुए नयन--!

निःशब्द हुए नयन--!

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 कोमल मन, कुम्हलाया तन।

 भर अश्रु, निःशब्द हुए नयन।

 खड़ी बीच,चौराहा-सा आँगन।

 डरता, संभलता-सा बचपन।

 नित मन पुकार रहा कृष्ण।

 तड़प रहा, दुलार-सा मन।

 घर-बाहर कितने दुःशासन ।

 लूटने को मुरझाया यौवन।

 

झूझ रही नित हो तृण-तृण।

 कभी तो आयें यहाँ भी कृष्ण।

मुझमें कहाँ अब बचे प्राण।

 हार रही होकर बस परिमाण।

तपती दुपहरी-सा हर क्षण।

भीगे नयनों में छूरी-सा कण।

हृदय को करता छिन्न-भिन्न।

जाने कैसा बधूरा-सा ऋण।

नोट- बधूरा= चक्रवात



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