निःशब्द हुए नयन--!
निःशब्द हुए नयन--!
कोमल मन, कुम्हलाया तन।
भर अश्रु, निःशब्द हुए नयन।
खड़ी बीच,चौराहा-सा आँगन।
डरता, संभलता-सा बचपन।
नित मन पुकार रहा कृष्ण।
तड़प रहा, दुलार-सा मन।
घर-बाहर कितने दुःशासन ।
लूटने को मुरझाया यौवन।
झूझ रही नित हो तृण-तृण।
कभी तो आयें यहाँ भी कृष्ण।
मुझमें कहाँ अब बचे प्राण।
हार रही होकर बस परिमाण।
तपती दुपहरी-सा हर क्षण।
भीगे नयनों में छूरी-सा कण।
हृदय को करता छिन्न-भिन्न।
जाने कैसा बधूरा-सा ऋण।
नोट- बधूरा= चक्रवात