नदी
नदी
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सुनो
मैंने कहीं पढ़ा था
बहुत गहरी नदी
बिना आवाज़ के बहती है !
और बहुत,
गहरे दुःख बिना
आँसुओं के होते है
माना बहुत गहरी नदी
बिना आवाज़ के बहती है !
पर मैंने अक्सर ,
उसके सैलाबों को
बेहद उफनते देखा है
ठीक वैसे ही ,
बहुत गहरे ज़ख्म
सह कर किसी के आँसू,
भले ही सूख जाए पर अक्सर
मैंने उन ज़ख्मों को
नासूर बनते देखा है !
सुनो ,
तुम मेरे आँसुओं
की तुलना कभी किसी ,
नदी से ना करना क्योंकि,
मुझे नासूर से बहुत डर लगता है !
और ये ज़ख्म नासूर ना बने ,
उसका ध्यान भी अब तुम्हें
ही रखना है !