नदी की आत्मकथा
नदी की आत्मकथा
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पहाड पर बरसाती हूं
झरना बनकर गिरती हूं
समतल पर बहती हूं
जीवजंतुओं से मिलती हूं
धीरेधीरे विदा लेती हूं
सागर में डूबती हूं
डेर सारे संपत्ती।