शब्बा खैर ! शब्बा खैर !
Poem for Gulzar sahab (82th Birthday of Poetic Maestro) Poem for Gulzar sahab (82th Birthday of Poetic Maestro)
सुनो कुछ दूर और साथ निभा लो पास ही किनारा है... सुनो कुछ दूर और साथ निभा लो पास ही किनारा है...
वो भी अश्कों को बाँध मंच से वापस चला गया और लोग भी हीर रांझा में खो गए.... वो भी अश्कों को बाँध मंच से वापस चला गया और लोग भी हीर रांझा में खो गए....
तमाम ख़त जो उसने कभी मुझे लिखे वो कोरे के कोरे ही रहते थे.. तमाम ख़त जो उसने कभी मुझे लिखे वो कोरे के कोरे ही रहते थे..
आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ शायद, तेरी तस्वीर रूह में बसी है... आज फिर मैं सो नहीं पाया हूँ शायद, तेरी तस्वीर रूह में बसी है...