नारी
नारी


एक मुस्कान उसकी
गमों को भूला देती है,
नारी की कोमलता....
हर कठोरता को पिघलता देती है!
अपने सीने से लगाकर,
सिंचा है नारी ने हर इंसान को,
अपनी उंगलियों के सहारे....
चलना सिखाया इस संसार को!
इसका एक स्पर्श ममता का....
एहसास दिला जाता है,
नारी केआंचल में.…
सारा संसार समा जाता है !
कभी जनक की जानकी है य़े
तो कभी राम की सीता,
कभी काली-सा क्रोध है इसमें
तो कभी शकुंतला-सी शीतलता !
य़म को भी हरा दे....
ऐसी सावित्री-सी पतिव्रता,
महिषासुर वधनी भी है,
ये विश्व की जननी भी है,
द्रोपदी-सा लोच है इसमें,
इसमें धरती की है सहनशीलता !
मेनका – उर्वशी की सुंदरता भी है,
इसमें रानी लक्ष्मीबाई की वीरता भी है,
ये गृहिणी बन घर को स्वर्ग बनाती है,
मां टेरिसा बन विश्व को....
दया का पाठ पढ़ाती है !
नारी ममता की परिभाषा,
प्रेम का सागर है,
त्याग की मूरत,
क्षमा का भंडार है।
क्या नाम दूं तुझे, नारी
तू कोमल है, तू शीतल भी,
तू ही प्रिया, तू ही ममता,
तू क्षमा है, तू दया भी,
तू कल्पना, तू ही कविता!
तू आरती, तू पूजा भी,
तू तृष्णा है, तू ही सरिता,
तू पायल है, तू बंदिया भी,
तू चंदा, तू ही सविता!
तेरे रुप अनेक है,
तू किसी एक नाम में कहां समाती है,
तू सूर्य की किरणों की भांति....
संसार को जीवन देती है।