मुखौटे
मुखौटे
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मेले से घरों तक आते मुखौटे,
आसानी से किरदारों पर चढ़ जाते मुखौटे
बनावटी सूरत को हकीक़त दिखाते मुखौटे,
बाहरी दुनिया को भरमाते मुखौटे
अपनी सच्ची सूरत से घबराते मुखौटे,
अपनी चालाकी पर इतराते मुखौटे
जो खींचा चेहरे से मुखौटों को, तो तिलमिलाते मुखौटे,
आखिर कब तक सच्ची सूरत छुपाते मुखौटे
भले चाहे कितना ना चाहो, फिर भी
एक ना एक दिन तो उतर जाते मुखौटे!
