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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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मुझे हारना पसंद नहीं

मुझे हारना पसंद नहीं

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वक्त की आदत से वाकिफ़ हूँ

पीछे छूट ही जाते है गुज़रे लम्हें,

फिर भी 

एक वादे पे अटकी है जान

 

तुम जानते हो मुझे हारना पसंद नहीं 

रेत से भरी घड़ी में एक कील चुभा दी है

नहीं देखना मुझे उसे नीचे की तरफ़

बहते झरने से खाली होते!


ये कील नहीं मोहलत ही समझो

साँसों का गुब्बार खत़्म होने की

क्षितिज के पार होता दिखेगा

तब चुपके से कील हटा दूँगी

बह जाने दूँगी रेत

गर उम्मीद की डोर टूट गई मेरी

तुम्हारा रास्ता तकते! 


एक बार अहसास में बसकर कह दो ना

तुम जिताओगे मुझे! 

कर दोगे न उल्टा इस नीचे गिरती रेत के उदास कणों को


ये मन के महलों में सजे स्पंदनों का असबाब है,

ये आस का पंछी मन की मुंडेर से क्यों उड़ता ही नहीं।

तुम पर निर्भर है मैं याद हूँ या

वक्त की बयार संग उड़ चली है मेरी यादें

इस गिरती रेत की मानिंद


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