मुहब्बत मुझको
मुहब्बत मुझको
1 min
294
हर शाम मिलने आए तन्हाई से मुहब्बत मुझको ,
आके जो घर कर जाए रुनाई से मुहब्बत मुझको।
मैं बैठ जाता हूँ अपने यादों के घराने लेकर ,
अपने ही दिल की जागी रुस्वाई से मुहब्बत मुझको।
मेरी गली क्युँ कोई आयॆ दरवाजा खटकाये क्युँ,
हर एक देने वाली हरजाई से मुहब्बत मुझको।
उनके रची दूजे सजना की जो मेंहदी हाँथो में ,
वो रात गाने वाली शहनाई से मुहब्बत मुझको।
अब धूप मुझको प्यारी लगती इक साया तड़पता है,
इक पास मेरे बैठी परछाईं से मुहब्बत मुझको।
तूफां उमड़ आता ख्यालों का सागर जो भर आये जब,
अन्दर डुबाने वाली गहराई से मुहब्बत मुझको ।
