मुहब्बत है, कोई सौदा नहीं है !
मुहब्बत है, कोई सौदा नहीं है !
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तू कहता है कि तू प्यासा नहीं है ।
समन्दर है तो क्यों दिखता नही है ।।
अगर खामोश है कुछ बात होगी ;
ये उसका कुदरती लहजा नहीं है ।
मुकम्मल आदमी होगा भी कैसे ;
वो अब तक खुद को ही समझा नही है ।
परेशां है तेरी नाराजगी से ;
वगरना दिल कभी हारा नहीं है ।
किसी मुफ़लिस की खातिर एक फुलका ;
इनायत है, महज टुकड़ा नहीं है ।
तेरी फरमाइशें, शर्तें मेरी जाँ ;
मुहब्बत है कोई सौदा नहीं है ।
