मत्तगयंद सवैया १
मत्तगयंद सवैया १
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रामहि संग सिया मनही मन रास रचाय लजाय रही हैं ।
प्रीत फुहार अगार पगार व तीनहुँ लोक लुभाय रही हैं ।
लोक बिसार बिसार सभी कुछ फाग व राग सुनाय रही हैं ।
बीच सभा सब दंग सिया मन ही मन क्यों मुसकाय रही हैं ।।