मरने की प्रतीक्षा
मरने की प्रतीक्षा
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जरूरत पड़ी तो बाज़ार में खड़े होकर मैंने लगाई अपनी बोली
मैं बिक न सका
फिर मुझे सख्त जरूरत थी
सो मैंने नीलामी करवायी अपनी
जब नीलाम न हो सके तो मेरी मायूसी देखकर एक सज्जन ने कहा - कवि तुम अनमोल हो
तुम्हारे दाम नहीं होते
तुम बाजार के लायक नहीं
हाँ तुम मरने के बाद संग्रहालय में स्थापित किए जा सकते हो
अब मैं मरने की प्रतीक्षा में हूँ.