मर्द को दर्द नहीं होता
मर्द को दर्द नहीं होता
आखिर किसने बनाई ये कहावत की मर्द को दर्द नहीं होता,
कहा क्या किसी मर्द ने की उसे दर्द नहीं होता!!
क्या उसके सीने में दिल नहीं क्या उसके अन्दर कोई जज़्बात नहीं,
उससे पूछो जब उसकी भावनाओं की कद्र नहीं होती, आँखें नहीं रोती है तब भी उसकी
मगर उसका दिल रोता है, उस रोते हुये दिल को कभी तो तुम देखो, तो एक नई कहावत बनेगी
की दर्द मर्द को भी होता है!!
आखिर किसने बनाई ये कहावत की मर्द को दर्द नहीं होता, कहा क्या किसी मर्द ने की उसे दर्द नहीं होता!!
कितनी रचनाये कितने लेख लोग लिखते है स्त्री पर
बुरा भी नहीं है हम है इस काबिल, गूँज उठती है ना जाने कितनी महफ़िल स्त्री के विश्लेषण से,
मग़र कोई महफ़िल पुरुषों के दर्दों का बखान क्यों नहीं करती, मैं चाहती हूँ एक स्त्री की गूँज के,
साथ-साथ एक पुरुष की भी गूँज उठे, कोई कम नहीं है दर्ज दोनों को क्यों ना मिले!!
आखिर किसने बनाई ये कहावत की मर्द को दर्द नहीं होता, कहा क्या किसी मर्द ने की उसे दर्द नहीं होता!!
कुछ पुरुष होते है जो स्त्री का अपमान करते है उन पे हाथ उठते है उनकी बेइज्जती करते है,
वो मर्द फिर नहीं कहलाते है, लेकिन जो असल में मर्द उनको उनकी अहमियत मिलनी चाहिये,
जो पुरुष है काबिले तारीफ उनको उनका हक मिलना ही चाहिये,
मैं स्त्री हूँ तो क्या हुआ अन्त में यही कहूंगी की मर्द को भी दर्द होता है!!
आखिर किसने बनाई ये कहावत की मर्द…..........