मंज़िल की ओर
मंज़िल की ओर
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मंज़िल की ओर
संघर्षों का झंझावात,
वीरान कर देता जीवन।
हिला देता है,
विश्वास की जड़ों को।
झकझोर देता है
अरमानों को।
निराशा का झोंका
जब हर ओर से
बहने लगता है।
लड़खड़ा जाते है कदम
सँभलना मुश्क़िल
लगने लगता है।
तभी
एक अदम्य आस्था
अनंत शक्ति समेटे
इस कदर
हिलोर लेती है
मन के समंदर से
कि
सारे झंझावात
स्थिर हो जाते है।
विश्वास की जड़ें
और गहरी जड़ जाती है।
जीवित हो उठते है
अरमान ।
उम्मीद जगती है
नई आशा की।
अपने आप ही
सँभल जाते है
कदम
और बढ़ उठते है
मंज़िल की ओर .......