मनोरम छंद
मनोरम छंद
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मौत मेरा क्या करेगा ।
मार या तू खुद मरेगा ।।
दान खुद का मैं करूॅंगा ।
चाल तो अब मैं चलूॅंगा ।।
भीष्म बन अब मैं लड़ूॅंगा ।
कर्ण सा यदि मैं मरूॅंगा ।।
दिव्य अनुपम काल होगा ।
युद्ध भी विकराल होगा ।।
मृत्यु से ही सामना है ।
जीत हो बस कामना है ।।
चाप धनु अब तानना है ।
ध्वज जय का बाॅंधना है ।।
बात मेरे आन की है ।
मान की है शान की है ।।
रौद्रता में गान की है ।
रक्त से अब स्नान की है ।।
भूत मेरा भूल होगा ।
नव उदय ही मूल होगा ।।
खो गया जो धूल होगा ।
जो मिला वो फूल होगा ।।