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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

Others

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Shailendra Kumar Shukla, FRSC

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मन था

मन था

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मन था तुम्हारे साथ साथ चलने का 

सोचा था तुमसे हाथ थामे रहने का 

ज़रूरत है कभी किसी की क्यूँ ए रब 

जब तेरा कांधा है सर रख कर रोने का !


मंजिल की तलाश जो सब करते हैं 

वो ही तो रास्ते भी अक्सर भटकते हैं 

किसी को क्या पता है हम रहे ना रहे 

मंजिल तो आज है, फिर किस लिए तड़पते हैं !


सब पा जाये इसका इंतजार करते हैं 

सब पाकर क्या इतमीनान करते हैं 

सब्र को कहते हैं की वो प्यार करते हैं 

पर बेसबरी से सब कुछ सामान भरते हैं !


मुझे यकीन है वो तो झूठा ना होगा 

पर लाजमी है वो रूठा भी ना होगा 

जबान कड़क है और चेहरे पे अकड़ है 

सच्चा भले हो शायद वो मीठा ना होगा !!


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