मन मलंग हुआ जाता है
मन मलंग हुआ जाता है
कान्हा की मुरली की धुन सुन
कौन नहीं होता गोकुल में मगन
सारी प्रकृति भी झूमें संग - संग
हर दिल में भर जाता है उमंग।
खुदको भुलाकर बेफिक्र - से
अपनी अवस्था का छोड़ ध्यान
आँखें मुंदे तन-मन से हो विभोर
ऐसी मुरली की स्पर्श करती है तरंग।
कृष्णा की प्रियतमा प्यारी राधिका
जमुना किनारे जलकी मटकी लिए
पाजेब छनकाती चली थम - थम
छलकती गगरी भिगोये अंग - अंग
ए मुरली मनोहर करो गोपियों पर रहम
सुध - बुद्ध से बिछड़ चल पड़े हैं कदम
हो दीदार साँवली सूरत अपने प्रियतम का
पाकर उनकी झलक हो जाये मन मलंग।
बांसुरी की लय में घुला है अप्रतिम सुकून
पायलों की झनक कँगनों की मीठी खनक
कलकलाती लहरें फूलों की भीनी महक
चहूँ ओर बिखरा है प्रेम बस प्रेम सा रंग।