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Jhilmil Sitara

Classics

4.5  

Jhilmil Sitara

Classics

मन मलंग हुआ जाता है

मन मलंग हुआ जाता है

1 min
383



 कान्हा की मुरली की धुन सुन

कौन नहीं होता गोकुल में मगन

सारी प्रकृति भी झूमें संग - संग 

हर दिल में भर जाता है उमंग।


खुदको भुलाकर बेफिक्र - से

अपनी अवस्था का छोड़ ध्यान

आँखें मुंदे तन-मन से हो विभोर

ऐसी मुरली की स्पर्श करती है तरंग।


कृष्णा की प्रियतमा प्यारी राधिका

जमुना किनारे जलकी मटकी लिए

पाजेब छनकाती चली थम - थम


छलकती गगरी भिगोये अंग - अंग

ए मुरली मनोहर करो गोपियों पर रहम

सुध - बुद्ध से बिछड़ चल पड़े हैं कदम

हो दीदार साँवली सूरत अपने प्रियतम का

पाकर उनकी झलक हो जाये मन मलंग।


बांसुरी की लय में घुला है अप्रतिम सुकून

पायलों की झनक कँगनों की मीठी खनक

कलकलाती लहरें फूलों की भीनी महक

चहूँ ओर बिखरा है प्रेम बस प्रेम सा रंग।


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