मन में रावण रहता है
मन में रावण रहता है
मोटी-मोटी बात है इतनी, जो दिखता है बिकता है ।
चमकदार पन्नी से आखिर, सच कब बाहर दिखता है ।।
डलहौजी की नीति से आगे, आज हमारी नीति गयी ;
अगर देश का नेता चाहे, देश बेच भी सकता है ।।
बाहर से मीठी बाते हैं, नर्म-गर्म लहजे वाली ;
लेकिन कोई कैसे जाने, अंदर क्या-क्या पकता है ।।
राम तुम्हारे राज वंश में, कैसे-कैसे लोग हुए ;
रोज पूजते हैं तुमको पर, मन में रावण रहता है ।
पत्थर को बेकार समझना, नादानी है बस तेरी ;
इसी हिमालय की आँखों से, झरना रोज निकलता है ।
खिलजी मुगल सल्तनत वाले, जो थे कब के चले गये ;
अब जुम्मन अपनी आँखों में, भारत जिन्दा रखता है ।
गौरी भले नहीं मिलता है, मगर आज भी टुकड़ों पर ;
यहीं कहीं जयचंद नाम का, कोई दुश्मन पलता है ।
खुद्दारी में जीना 'अस्मित', इतना भी आसान नहीं ;
कहीं कहीं पर कभी कभी ही, कोई सूरज जलता है ।