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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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मन की व्यथा।

मन की व्यथा।

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एक बार तो दर्शन दे दो प्रीतम, मन की व्यथा सुनानी है,

 कुछ तुम कहो, कुछ मैं कहूँ, दुनिया तो आनी जानी है।।


 याद तुम्हारी जब भी आती, हृदय की धड़कन बढ़ जाती है,

 प्यारी सूरत, ना जाने क्यों, मन से निकाली न जाती है,

 क्या यूँ ही जीवन बीत जाएगा, कैसी यह मनमानी है।। एक बार तो.... 


जीवन का तो कुछ पता नहीं, सब कुछ तुम पर छोड़ा है,

आस है तुम्हारे मिलने की, तुम से ही नाता जोड़ा है,

 मैं तो ठहरा एक बेबस मजनूँ, ऐसी मेरी कहानी है।। एक बार तो....... 


 मैं तो ठहरा कुटिल-कामी, मान -मर्यादा की खबर नहीं,

 लेकिन तुम तो हो पतित -पावन, मुझ सा कोई बदनाम नहीं,

 मुझे पता है तुम मान जाओगे, मेरा प्रीतम बड़ा ज्ञानी है।। एक बार तो...

 

लगन तुम्हारी ऐसी लागी, जैसे तड़पे जल बिन मछली,

 अब तो बचा लो डूबती नैया, तुम्हारे नाम की माला जप ली,

" नीरज" को सिर्फ तुम्हारी चाहत, विनती यही तुमसे करनी है।। एक बार तो......


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