मलाल
मलाल
जीते-जीते यूँ ही मुझको ख़याल आया तेरा
मरते-मरते ज्यूं किसी को याद आए ज़िन्दगी।
मन की विला में शब्दों का वैभव लखलूट भरा है, शांत झरोखा, मेज है, कुर्सी है सारे इन्तज़ामात भरे पड़े है पर स्याही दवात में शांत पड़ी है।
रूठी है कलम की कृपा कहो कैसे लिखूँ? वो आँखों का जादू, वो तिलिस्मी हंसी, वो ज़ालिम अदा, वो मनचाही कल्पना तुम्हारे जाते ही वीरान सी बड़ी है।
तुम बौछार थे मेरे स्याही सपनो में रंगों की, तुम खुशी थे मेरी गज़लों की, तुम नुक्ता थे मेरे लेखन के, तुम वजह थे मेरे जीने की।
आग लगाते उदास लम्हों में शीत समुन्दर था प्यार तुम्हारा, तुम्हारी आँखों में डूबकर लिख लेती थी लाखों कहानीयाँ, गहराई वो मुझसे बिछड़ गई,
अब कोरे पन्नों पर बेरंग अश्कों के आबशार की कविताएं बिखरी पड़ी है।
मलाल है मोहब्बत में मंज़िल ना मिली वादों के पक्के पुजारी तुम गिरह छुड़ाकर कहाँ चल दिए,
रौनक ही नहीं जब ज़िंदगी में कोई मुकम्मल कहानी कैसे लिखें कोई।