मिट्टी मेरे गाँव की
मिट्टी मेरे गाँव की
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मेरे गाँव की मिट्टी मुझे सदा बुलाती है,
वो मुझे अपनेपन का एहसास कराती है,
शहर के ऊँचे ऊँचे मकानों और फ्लैटों में,
कहाँ वह आत्मीयता नजर कभी आती है।
वो गाँव की मिट्टी की सोंधी महक,
नाच उठता है मन मेरा चहक चहक,
शुद्ध हवा शुद्ध जल और ताजा फल,
चाहता है मन मेरा लहक लहक।
वो बागों में कोयल की कुहुकूँ,
कबूतर के जोड़े जो करते गुटरगूँ,
वो पेड़ों पर बौराया है आमों का मंजर,
लहलहाते खेतों की धनक से नाचे मेरा जी।
वो बैलों के गले की है घंटी,
वो किसान के आवाज में संगीत,
वो पगडंडियों पर गिरते सम्भलते चलते हम,
गाँव की वो मिट्टी की याद सता रही।
