मिज़ाज
मिज़ाज
आज समझ आया लोगों का मिज़ाज,
दुख में हँसने सुख में रोने का हिसाब।
हमारे सफलताओं पे भौएं चढ़ाने का
वो अंदाज़,
और विफलताओं पर ताने देने की वो
आवाज़।।
गूंजती है आज भी मेरे कानों में वो झंकार,
वो झकझोर देने वाली मेरे मन की पुकार।
सिर्फ लोगों के तानों की वजह तो नहीं थी,
एक डर सा था सीने में असफल होने का।।
सफलता की उम्मीद तो पूरी थी,
पर शायद लोगों के तानों के डर ने जीने
नहीं दिया।
और मेरी हिम्मत नहीं हुई मारने की ,
जिंदगी जीना तो कब का छोड़ दिया।।
बस इस शरीर का बोझ उठाए फिर रहें है,
छोड़ो दुनिया की परवाह करना ।
क्योंकि ये दुनिया तब तक तुम्हारा मोल
नहीं समझेगी जब तक तुम इस दुनिया
के वासी हो।।