मेरी यादें।
मेरी यादें।
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मन का पंछी पंख फैलाकर,
उड़कर जाता है उस गांव,
जहाँ बसी हुई मेरी यादे,
आज भी मुझे बुलाती हैं,
सपनों के रथ में बैठाकर,
मुझे वहाँ घुमाती हैं,
वृक्ष शहतूत का एक बड़ा सा,
मुझको याद जो आता है,
कहाँ गए वो बचपन के दिन,
एक दर्द सा दे जाता है,
बचपन के संगी साथी सब,
ना जाने कहाँ छूट गए,
मिट्टी के जो बने थे महल,
न जाने कैसे टूट गए,
ना प्यार रहा ना अपनापन
जब से छूटा वह आशियाना,
मेरा ननिहाल अब उस जगह नहीं,
जिस जगह से था मेरा याराना।
