मेरी कविता
मेरी कविता
हमने भी सोचा
एक अनोखी कविता
को लिख डालूं !
साहित्य के तमाम
रसों को मिलकर
कोई नयी रचना
बना डालूं!!
हम अद्भुत
शब्दों के जालों
में फँसना चाहते हैं !
लोगों को भी विचित्र
ओर क्लिष्ट शब्दों
का दर्शन कराना
चाहते हैं!!
कई बार तो
हमने शब्दों पर
अधिक जोर दिया!
रस और भावनाओं
को दूर कहीं
छोड़ दिया!!
हमने भी कई बार
"विनय पत्रिका"
की तरह लिखना चाहा!
लोगों को सीधी
भाषा में "रामचरित
रामायण"
पढ़ते पाया!!
तभी से बात मेरे
मन में सीधी
छा गयी!
हमें अपनी बात
लोगों को कहनी
आ गयी!!
सहज भंगिमा
यदि सबको
स्वीकार है!
तो लखनऊ के
भूल-भूलिया में
घूमना बेकार है!!
