मेरा वजूद
मेरा वजूद
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मेरी पहचान थी तुम, मेरा वजूद थी तुम,
हर बात तुम से ही शुरू थी, हर सोच में थी तुम।
अब भी कोई जिक्र शुरू करती हूं,
घूम फिर कर आ कर तुम्ही पर रुकती हूँ।
तेरा जाना अब भी मुझे एक धोखा सा लगता है
जिस पर विश्वास होना बाकी है।
मैं जिंदा तो हूँ, पर क्या इस शरीर में
अब भी जान होना बाकी है।...
माना कि तुम दूर ही सही पर इन आँखों में तेरी तलाश
अब भी बाकी है।
ना सोचा था, की तुम इस तरह छोड़ कर चली जाओगी,
जो दर्द दिया तुम ने अब भी सहना बाकी है।
कुछ बोल ना सकी, मैं पर तेरे मिलने की
एक तलब अब भी बाकी हैं।