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" मेरा शहर मेरा गांव "

" मेरा शहर मेरा गांव "

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शहर बड़े रौब से

अपनी क़मीज़ के कॉलर

उठा कर कहा

" हम शहर हैं ,

हम गावों से निराले हैं ,

हमारी बातें ही कुछ और हैं ,

हम गाँव से बढ़कर हैं ,

हम उंच्चाईओं को छू रहे हैं ,

सुविधायें हमारी कदम चूमती हैं ,

विजली ,पानी ,सड़क ,मकान ,

अट्टालिकाओं से सुशोभित हैं ,

परिवहन सुविधायें चारों तरफ

फैली हुयी हैं ,

हम खान -पान में परहेज करते हैं ,

हमें किसी से क्या लेना

हम शान से रहते हैं ! "

**

गाँव शांत चित से सुन रहा था ,

शहर की विवेचना ,

अहंकार था या गर्व था ?

कर रहा था पूर्वजों की आलोचना ,

गाँव ने भी शिष्टता से यूँ कहा -

" हम नहीं करते निरादर ,

आपके इस प्रगति पथ को ,

किसमें है कोई रोक ले ,

आपके इस विजय रथ को ?

हम सही में सुख -समृद्धि

से वंचित रह रहे हैं ,

पर हम अपने समाज

से जुड़ रहे हैं ,

भूलकर भी विपदा ,

किन्हीं पर आन पड़ती ,

हम ग्रामवासी मिलके ,

उनका साथ देते ,

उनकी पीड़ा सब की पीड़ा ,

हम सभी यह जान लेते ,

शोक के क्षण जब ,

उनके चूल्हे ना जले ,

उनको हम सब ,

भोजनों के थाल से ही पूछते हैं ,

सहयोग की भावना ,

है व्याप्त हममें ,

इस तरह हम एक दूजे को,

देखते हो !"

***

अब आपको निर्णय ,

स्वयं करना पड़ेगा ,

कौन आगे बढ़ गया कौन पीछे रह गया ?

आपको कहना पड़ेगा !!

=


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