मेरा गांव
मेरा गांव
वो पहाड़ों के तलहटी में बसा मेरा गांव
आसमां में तारों सा बिखरा मेरा गांव।
वो पनघट का पानी खुशियों के मेले
गांव की मिट्टी में थड़या झुमेले।।
वो पीपल की छांव में देवों का वास
मंगेरूं के पानी से बुझ गई मेरी प्यास।
वो आम के बागों में कोयल की कूक
कोदा झंगेरू से मिटती है मेरी भूख।।
वो गायों का रंभाना गौ धुली की धूल
खेतों खलिहानों में खिले सरसों के फूल।
वो गाड गधेरों का निर्मल बहता पानी
सोंधी मिट्टी की है अपनी कहानी।।
वो मंदिरों में बजती मधुर घंटियाँ
जंगली फूलों की खिलती कलियां।
वो मां के हाथों का स्वादिष्ट भोजन
मंडुवे की रोटी में ताज़ा गुड मक्खन।।
वो गांव की शीतल ठंडी हवाएं
गालों को चुपके से मेरे छू जाएं।
याद आता है अक्सर मुझे मेरा गांव
बड़े सरगोशियों से मुझे बुलाता मेरा गांव।।
