मदनोत्सव
मदनोत्सव
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मैं धरा
कब से जोहूँ बाट
कोहरा बैरी
कैसे आओगे
प्रिय वसन्त
सूना सब श्रृंगार
तुम बिन
धानी चूनर हो रही मैली
सूनी मांग, सूनी हथेली,
तुम बिन
कौन गाए वसन्त बहार
मुरझाए केतकी गुलाब
तुम बिन
चली फ़िर बासन्ती बयार
छंटा कोहरा
खिली धूप
खिले महके
जूही चम्पा
लहरा उठी सरसों की
पीली चुनरिया
संवर गई
दुल्हन धरा
गूंज उठी वीणा के सुर
लो आ गया वसन्त
खिल उठे मन
पाकर मधुमास
फ़िर मनाया
धरा ने
वसन्त संग
मदनोत्सव...।