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Shubhra Varshney

Others

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Shubhra Varshney

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मैंने देखा एक सपना

मैंने देखा एक सपना

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मैंने देखा एक सपना

क्या कभी यह होगा मेरा अपना

ए मेरे प्यारे वतन

बना दूं मैं तुझे खुशियों का चमन।


जहां हो सब को रोटी और हो पीने को पानी

जहां हो खुशियों से भरी सब की जिंदगानी

जहां ना हो पाबंदी हंसने रोने पर,

जिंदा रहे लोग बिना किसी से डर कर।


चिराग व चूल्हे से खाली ना हो कोई घर,

तन पर हो वस्त्र और छत सर पर।

ना कोई फूल मुरझाए खिलकर,

ना झुके कोई खुद्दार सर।


रोटी के लिए न कोई रूह तरसे

किसानों की मेहनत से मिट्टी में सोना बरसे।

ना लाचार घर में लटका पाया जाए,

बेटियां भी अकेले चलने में ना घबराएं।


ना कर्ज़ से किसी का घर बने आग,

चिंता मुक्त रहकर गाए जिंदगी का राग।

इंसान में इंसानियत रहे पूरी,

मजहब के नाम पर ना बनाएं एक दूसरे से दूरी।


गुनाहों की तरफदारी ना करे खादी,

रिश्वत देकर ना करे कोई देश की बर्बादी।

बेगुनाहों के गले में ना पड़े फंदा,

जीत हो सच्चाई की इंसानियत रहे जिंदा।


बच्चों के हाथ में हो किताब और कलम

ना निकले किसी का कारखाने में दम

ना उठाए कोई जिल्लत का भार,

कमजोर हो की मदद को रहे सब तैयार।


मैंने देखा एक सपना

क्या कभी यह होगा मेरा अपना

ए मेरे प्यारे वतन,

बना दूं मैं तुझे खुशियों का चमन।



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