मैं लिखी हुई वो कहानी
मैं लिखी हुई वो कहानी
मैं लिखी हुई वो कहानी हूं
जिसमें तुम गुल जाना
हाथ में हाथ रख चलकर
हर सफर का अंत कर जाना
तुम सवाल बनना मैं जवाब बनूँगा
सारी हवाओ को लेकर
कहीं दफ्न हो जाना
मैं लिखी हुई वो कहानी हूं
जिसमें तुम गुल जाना
बाहर सब घूमकर भी सारे लोग
अब घर को है रवाना
कुछ नहीं चाहिए मुझे अब
मांग कर थक सा गया हूं
मुझे तो घर पर सिर्फ मा को
खुशी पर ही है सजाना
हाँ, यही देखने के बाद मुझे
कहीं नहीं जाना
मैं लिखी हुई वो कहानी हूं
जिसमें तुम गुल जाना
यह सारी हवाओ में डूबा-कर
लफ़्ज़ को मुझे तुम्हारे पास
है रह जाना
इसीलिए तुम्हें मेरी हर कहानी में है
गुल जाना
नहीं की किसीकी बातों में,किसीकी यादो में
तुम्हें जिंदा ही मर जाना
मैं लिखी हुई वो कहानी हूं
जिसमें तुम गुल जाना
तुम गांव में ही अच्छे लगते हो
मा को तन्हा कर कहीं शहर नहीं जाना
पेड़ काट कर ढूंढ़ने पर कहां छांव मिलेगी ?
छांव जैसी मोहब्बत पेड़ से भी कर जाना
थकान सारी उतारकर पापा की ,
कंधों पर जिम्मेदारी उठाना
मैं लिखी हुई वो कहानी हूं
जिसमें तुम गुल जाना
खोद जमीन को , बनाकर एक नन्ही कब्र
मुझे तो वहीं ही है सो जाना
मुझे ठंड न लगे इसीलिए तुम अपनी आंखों को बंद कर मेरे लिए चादर बन जाना।