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मैं कश्मीर हूँ

मैं कश्मीर हूँ

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मैं कश्मीर हूँ,

वर्षों से अधीर हूँ,

खूबसूरत तो बहुत,

पर मोहब्बत से फकीर हूँ।

 

मेरे तन से सबको प्यार

सब पाना चाहते एक बार,

ना चाहा कभी रूह को

किए मुझपे सौ सौ वार।

 

राज किया अब्दुल्लाह ने

सादिक ने मेहबूबा ने,

नशे में सियासत के

किया केवल शोषण सब ने।

 

हक जताता हिन्द कभी

कभी पाक की दरकार,

करते धमाके सीने पे

तुम ही बताओ कैसा ये प्यार?

 

कटते देखा पंडितों को

मरते हुए मुसलमानों को,

मेरे तो सभी बच्चे हैं,

हो किसी भी धर्म जाति के

सभी अच्छे हैं।

 

बचाना ही है मुझे

तो उनसे बचाओ

जो आतंक करें,

क्या शिव, क्या राम,

क्या अल्लाह से डरे।

 

बना के दीवार मजहब की

किए मेरे टुकड़े हज़ार,

ख्वाहिश रखते 72 हूरों की

और है जन्नत की दरकार।

 

मजहब नहीं सिखाता

दहशतगर्दी फैलाना,

अल्लाह नहीं दिखाता

आतंक की राह चलाना।

 

पढ़ी होती कुरान कभी

तो राह से भटके ना होते,

समझी होती आयतें कभी

यूं क़त्ल-ए-आम करते ना होते।

 

हाँ मैं कश्मीर हूँ,

वर्षों से अधीर हूँ,

खूबसूरत तो बहुत,

मोहब्बत से हूँ।



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